साल 2013 में डॉलर के मुकाबले रुपये गिरकर 68 रुपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब देश में मजबूत नेता आएगा। उस समय कहा जा रहा था कि यह बताना मुश्किल है कि डॉलर के मुकाबले रुपया ज्यादा गिर रहा है या कांग्रेस पार्टी? कांग्रेस पार्टी और रुपये के गिरने में होड़ लगी है।

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डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार गिरकर 79.37 पर आया, जानिए क्यों यह आपके लिए है खराब खबर

डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। मंगलवार (5 जुलाई) को यह 79.37 के स्तर पर बंद हुआ। पहली बार रुपया इस स्तर पर पहुंचा है। डॉलर में मजबूती, विदेशी फंडों (Foreign Portfolio Investors) की शेयर बाजार में बिकवाली और बढ़ते करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है।

डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी इंडियन इकोनॉमी के लिए अच्छा नहीं है। इसका सीधा असर सरकार की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा। आपके लिए भी रुपया का कमजोर होना अच्छा नहीं है। कमजोर डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? रुपया पहले से महंगाई से परेशान लोगों की मुसीबत बढ़ाएगा। जब महंगाई की दर पहले से ज्यादा हो तो करेंसी में कमजोरी उसके असर को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 6 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है।

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रुपया के कमजोर होने से आयात पर होने वाला खर्च बढ़ जाएगा। हर वह चीज महंगी हो जाएगी, जिसका हम आयात करते हैं। इंडिया क्रूड ऑयल, खाद्य तेल, प्रेसियस मेटल्स, केमिकल, इलेक्टॉनिक प्रोडक्ट्स सहित कई चीजों का काफी आयात करता है। इनका पेमेंट डॉलर में होता है। इसलिए इनके आयात के लिए अब पहले से ज्यादा कीमत चुकानी होगी।

देश में क्रूड की जरूरत का करीब 85 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा होता है। रुपया के कमजोर होने से हमें हर बैरल क्रूड के लिए पहले से ज्यादा कीमत चुकानी होगी। घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमत वैश्विक कीमत से जुड़ी है। ऐसे में वैश्विक बाजार में क्रूड की कीमत बढ़ने पर घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल का प्राइस बढ़ना तय है।

क्यों आती है रुपये में कमजोरी, डॉलर से ही क्यों होती है तुलना

क्यों आती है रुपये में कमजोरी, डॉलर से ही क्यों होती है तुलना

Dollar Vs Rupee: रुपये में कमजोरी कई वजह से होती है। इसका सबसे आम कारण है डॉलर की डिमांड बढ़ जाना। अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल से निवेशक घबराकर डॉलर खरीदने लगते हैं। ऐसे में डॉलर की मांग बढ़ जाती है और बाकी मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है। शेयर बाजार की उथल-पुथल का भी रुपये की कीमत पर असर होता है।

रुपये की तुलना डॉलर से ही क्यों

वैश्विक स्तर पर अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। रुपये की डॉलर से ही तुलना क्यों होती है? इस सवाल का जवाब छिपा है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ में। इस समझौते डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? में न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।

डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार गिरकर 79.37 पर आया, जानिए क्यों यह आपके लिए है खराब खबर

डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। मंगलवार (5 जुलाई) को यह 79.37 के स्तर पर बंद हुआ। पहली बार रुपया इस स्तर पर पहुंचा है। डॉलर में मजबूती, विदेशी फंडों (Foreign Portfolio Investors) की शेयर बाजार में बिकवाली और बढ़ते करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है।

डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी इंडियन इकोनॉमी के लिए अच्छा नहीं है। इसका सीधा असर सरकार की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा। आपके लिए भी रुपया का कमजोर होना अच्छा नहीं है। कमजोर रुपया पहले से महंगाई से परेशान लोगों की मुसीबत बढ़ाएगा। जब महंगाई की दर पहले से ज्यादा हो तो करेंसी में कमजोरी उसके असर को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 6 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है।

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रुपया के कमजोर होने से आयात पर होने वाला खर्च बढ़ जाएगा। हर वह चीज महंगी हो जाएगी, जिसका हम आयात करते हैं। इंडिया क्रूड ऑयल, खाद्य तेल, प्रेसियस डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? मेटल्स, केमिकल, इलेक्टॉनिक प्रोडक्ट्स सहित कई चीजों का काफी आयात करता है। इनका पेमेंट डॉलर में होता है। इसलिए इनके आयात के लिए अब पहले से ज्यादा कीमत चुकानी होगी।

देश में क्रूड की जरूरत का करीब 85 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा होता है। रुपया के कमजोर होने से हमें हर बैरल क्रूड के लिए पहले से ज्यादा कीमत चुकानी होगी। घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमत वैश्विक कीमत से जुड़ी है। ऐसे में वैश्विक बाजार में क्रूड की कीमत बढ़ने पर घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल का प्राइस बढ़ना तय है।

स्वामीनाथन अय्यर का लेख: इसलिए तेजी से गिर रहा रुपया लेकिन डॉलर के मुकाबले 80 पर भी चला जाए तो चिंता नहीं. जानें ऐसा क्यों कह रहे अर्थशास्त्री

why we should not worry about rupee even if it falls up to the level of 80 against dollar

स्वामीनाथन अय्यर का लेख: इसलिए तेजी से गिर रहा रुपया लेकिन डॉलर के मुकाबले 80 पर भी चला जाए तो चिंता नहीं. जानें ऐसा क्यों कह रहे अर्थशास्त्री

रुपये की गिरावट की वजहों को जानने से पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि सिर्फ रुपया ही नहीं है जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढ़ाए जाने के बाद अमेरिका में तेजी से ग्लोबल मनी पहुंचना शुरू हुई है। इसके चलते रुपये के साथ-साथ दुनिया भर की करंसी कमजोर हो रही हैं। पिछले साल रुपया 5 फीसदी गिरा, जबकि यूरो 7 फीसदी और येन 14 फीसदी गिरा। चीन के युआन में भी भारी गिरावट आई।

पिछले सालों में यूं गिरता गया रुपया

2020 के शुरुआती दिनों में डॉलर की तुलना में एक्सचेंज रेट 71 रुपये के लेवल पर था। कोरोना के आने के बाद यह कमजोर होकर 74-76 रुपये के करीब जा पहुंचा। रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसे 78.50 के लेवल तक धकेला। अब महंगाई की मार इसे और कमजोर बना रही है। अगर ये 80 तक पहुंच गया तो सियासी गलियारे में भूचाल आ सकता है और विपक्ष इस बात को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश करेगा कि उनके कार्यकाल में रुपया बहुत अधिक गिर गया, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है। हालांकि, बहुत से अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर 80 रुपये तक भी रुपया गिर जाता है तो चिंता की बात नहीं है। उनका मानना है कि रुपये के 80 के लेवल तक गिर जाने पर यह कहना गलत होगा कि अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है।

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-80-

मौजूदा समय में भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को रोकने के लिए लगातार डॉलर्स बेच रहा है। 2021 में भारत का विदेशी डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर था, जो आज की तारीख में घटकर 596 अरब डॉलर ही रह गया है। सवाल ये है कि क्या ये सही पॉलिसी है? क्या रिजर्व बैंक राजनीतिक दबाव में ऐसा कर रहा है? विशेषज्ञों का मानना है कि रिजर्व बैंक के एक स्वतंत्र इंस्टीट्यूशन होने के नाते उसे विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचने रोकने चाहिए। आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दाम काफी बढ़ सकते हैं और ऐसी स्थिति में भारत को विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत होगी। ऐसे में रुपये को थोड़ा बहुत गिरने से रोकने के लिए डॉलर बेचने की जरूरत नहीं है। यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। ध्यान रहे, आज पाकिस्तान और श्रीलंका की हालत बद से बदतर इसलिए होती जा रही है, क्योंकि उनके पास आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार ही नहीं है। तो इस वक्त विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने की जरूरत है।

डॉलर के मुकाबले रुपया 80 के पार—यानी—महंगाई की और ज़्यादा मार

जब सामान और सेवाओं के आयात पर पहले से ज्यादा खर्च होगा तो देश में उन सब सामान और सेवाओं की कीमतें बढ़ेंगी जिनका आयात किया जाता है। डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने का मतलब है कि महंगाई का पहले से ज्यादा होना।

dollar vs rupee

एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार पहुंच चुकी है। खबर लिखने तक की बात यह है कि 1 डॉलर के लिए तकरीबन 81 रुपए देने पड़ रहे हैं। रुपये का यह अब तक का सबसे निचला स्तर है।

मतलब अगर विदेशों से कोई सामान और सेवा खरीदनी होगी तो उसके लिए 81 रुपये की दर से भुगतान करना पड़ेगा।

ठीक इसका डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? उल्टा भी होगा। यानी अगर कोई सामान और सेवा विदेशों को निर्यात की जायेगी तो उसके लिए पहले के मुकाबला ज्यादा भारतीय पैसा मिलेगा। अब आप यहां पर कहेंगे डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? कि यह तो अच्छी बात है। निर्यात करने पर भारत को विदेशों से ज्यादा पैसा मिलेगा।

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