गिरावट की मुद्रा
भारतीय रुपया एक बार फिर डालर के मुकाबले गिर कर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया।
सांकेतिक फोटो।
रुपया लगातार नीचे की तरफ रुख किए हुए गिरावट की मुद्रा है, इसलिए इसे लेकर अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाएं धुंधली होने लगी हैं। जब भी किसी मुद्रा में लगातार गिरावट का रुख बना रहता है, तो वहां मंदी गिरावट की मुद्रा की संभावना प्रबल होने लगती है। एक डालर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में तिरासी रुपए एक पैसा आंकी गई।
हालांकि सरकार को उम्मीद है कि यह दौर जल्दी ही खत्म हो जाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगी। शायद इसी विश्वास के चलते वित्त मंत्री ने भी कह दिया कि रुपए की कीमत नहीं गिर रही, डालर मजबूत हो रहा है। रुपए की कमजोरी की बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को बताया जा रहा है। मगर केवल इन्हीं दो स्थितियों को रुपए के कमजोर होने का कारण नहीं माना जा सकता। किसी भी मुद्रा में गिरावट तब आनी शुरू होती है जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिकुड़न आने लगती है यानी खरीदारी कम होने लगती है। लोगों की क्रयशक्ति घटने लगती है और लोग निवेश को लेकर हाथ रोक देते हैं।
पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। विकसित देशों में भी खुदरा और थोक महंगाई चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन घट रहा है। भारत में भी औद्योगिक उत्पादन का रुख नीचे की तरफ बना हुआ है। घरेलू बाजार में ही खपत ठहर गई है। विदेशी बाजारों में महंगाई बढ़ी होने की वजह से भारतीय वस्तुओं की पहुंच संतोषजनक नहीं हो पा रही।
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निर्यात के मामले में पहले ही लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी नहीं मिल पा रही थी, कोरोनाकाल के बाद स्थिति और खराब हुई है। निर्यात घटने से विदेशी मुद्रा भंडार में अपेक्षित बढ़ोतरी गिरावट की मुद्रा नहीं हो पाती। फिर जब रुपए की कीमत गिरती है, तो बाहर से मंगाई जाने वाली वस्तुओं पर अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आती जाती है।
भारत डीजल और पेट्रोल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर है, इसलिए उसे अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। फिर घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें संतुलित नहीं हो पा रही हैं और उसका असर न सिर्फ माल ढुलाई और परिवहन पर पड़ता है, बल्कि औद्योगिक उत्पादन में भी लागत बढ़ जाती है। इस तरह एक ऐसा चक्र बनता है, जिसे सुधारने के लिए बुनियादी स्तर से काम करना जरूरी होता है।
रुपए की गिरती कीमत और बढ़ती महंगाई का सीधा असर रोजगार सृजन पर पड़ता है। उत्पादन घटता है, तो औद्योगिक इकाइयों की कमाई भी घट जाती है, जिसके चलते उन्हें अपने खर्च में कटौती करनी पड़ती है। स्वाभाविक ही वे छंटनी का फैसला करती हैं। रिजर्व बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी कर महंगाई पर काबू पाने का प्रयास कर रहा है, मगर इसका भी औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिकूल असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने कर्ज पर अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। अगर ये स्थितियां लगातार बनी रहती हैं, तो देश मंदी की तरफ बढ़ना शुरू कर देता है। इसलिए सरकार को ऐसी योजनाओं पर विचार करने की जरूरत है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों और लोगों के हाथ में कुछ पैसा आना शुरू हो। उन क्षेत्रों की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिनमें छोटे स्तर के रोजगार की संभावनाएं अधिक हैं।
रुपया रसातल में, अब विदेशी मुद्रा भंडार ने बढ़ाई टेंशन, 4.50 करोड़ डॉलर की बड़ी गिरावट
अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपया शुक्रवार को चार पैसे की तेजी के साथ 82.75 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ। रुपये में शुरू में गिरावट आई थी लेकिन घरेलू शेयर बाजार में तेजी के साथ यह बढ़त में बंद हुआ।
भारतीय करेंसी रुपया में हर दिन नई गिरावट आ रही है। इस गिरावट के बीच अब देश का विदेशी मुद्रा भंडार 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 4.50 करोड़ डॉलर घटकर 528.37 अरब डॉलर पर आ गया। इससे पहले, सात अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 20.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 532.868 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।
इसमें इस साल अगस्त के बाद से पहली बार किसी साप्ताह में वृद्धि हुई थी। बता दें कि एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था।
लगातार आ रही गिरावट: देश का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कई हफ्तों से लगातार कम हो रही है। दरअसल, तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में डॉलर के मुकाबले तेजी से गिरते रुपये को संभालने के लिए आरबीआई ने इस विदेशी मुद्रा भंडार के एक हिस्से का इस्तेमाल किया है।
आंकड़ों के अनुसार, 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 2.828 अरब डॉलर घटकर 468.668 अरब डॉलर रह गयीं। एफसीए असल में समग्र भंडार का एक प्रमुख हिस्सा होता है। डॉलर के संदर्भ में एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्य वृद्धि या मूल्यह्रास का प्रभाव शामिल होता है।
स्वर्ण भंडार के मूल्य में सात अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 1.35 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी। जबकि 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में यह 1.502 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 37.453 अरब डॉलर रह गया।
रुपया का हाल: बता दें कि अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपया शुक्रवार को चार पैसे की तेजी के साथ 82.75 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ। रुपये में शुरू में गिरावट आई थी लेकिन घरेलू शेयर बाजार में तेजी के साथ यह बढ़त में बंद हुआ।
रुपये की ‘रिकॉर्ड गिरावट’ से बहुत चिंतित होने की जरूरत क्यों नहीं है
‘मजबूत मुद्रा’ की नीति बनाने वाले यह भूल जाते हैं कि दीर्घकालिक विकास की सफलता का रेकॉर्ड रखने वाले प्रायः हर देश ने निर्यात बाज़ार को जीतने के लिए ‘कमजोर मुद्रा’ की नीति अपनाई
तस्वीर- दिप्रिंट
जब पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब अपनी पतली चमड़ी के लिए मशहूर नेता अखबारों की ये सुर्खियां पढ़कर उत्तेजित हुआ करते थे— ‘रुपये ने नयी गहराई को छूआ’, या ‘रेकॉर्ड गिरावट दर्ज की’. मुद्रा की गिरती कीमत को वे अपने कामकाज के नतीजे के रूप में देखते थे लेकिन इन सुर्खियों में उन्हें एक मुद्दा नज़र आता था कि रुपये जैसी आम तौर पर कमजोर मुद्रा अगर गिर रही है तो हरेक गिरावट (चाहे वह कुछ पैसे की क्यों न हो) ‘रेकॉर्ड गिरावट’ ही होगी. लेकिन सुर्खियां और मंत्री की प्रतिक्रिया, दोनों कमजोर मुद्रा के प्रति पूर्वाग्रह को उजागर करती है. वास्तव में, मुद्रा की कीमत में वृद्धि से ज्यादा उसमें गिरावट पर लोग ज्यादा ध्यान देते हैं.
यह इतिहास क्यों प्रासंगिक है? क्योंकि सुर्खियां अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट की बात करती हैं. अखबार यह नहीं बताते (जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने बृहस्पतिवार को रेखांकित किया) कि सभी देशों की मुद्राओं की कीमत डॉलर के मुक़ाबले गिर रही है और रुपये में बाकी कई के मुक़ाबले कम गिरावट आई है— 2022 के छह महीने में 6 फीसदी की. इसकी तुलना में यूरो में 11.6 फीसदी की, येन में 19.2 फीसदी की और पाउंड में 13.2 फीसदी की गिरावट आई है. चीन की युआन में 3.6 फीसदी की ही गिरावट आई. लेकिन ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, और बेशक पकिस्तना की मुद्राओं में ज्यादा गिरावट आई. इसलिए सही सुर्खी तो यह होती कि लगभग सभी मुद्राओं के मुक़ाबले रुपये की कीमत बढ़ी है. लेकिन समाचार जगत पिछड़ रहा है.
क्या इससे फर्क पड़ेगा? जवाब हैं, हां क्योंकि इससे नीति गलत दिशा पकड़ लेती है. उदाहरण के लिए, नरेंद्र मोदी की सरकार ‘मजबूत मुद्रा’ की नीति के पक्ष में पूर्वाग्रह रखते हुए सत्ता में आई थी.
ऐसी नीति बनाने वाले भूल जाते हैं कि सफल विकास का दीर्घकालिक रेकॉर्ड रखने वाली लगभग हरेक देश (जापान और चीन इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं) ने निर्यात बाज़ार को जीतने के लिए ‘कमजोर’ मुद्रा’ की नीति चलाई है. वजह सीधी सी है— आप विकास की जिस अवस्था में हैं उसमें तकनीक या उत्पाद की गुणवत्ता के मामले में होड़ नहीं ले सकते इसलिए अगर आप मुख्यतः कीमत के मामले में प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं तो कमजोर मुद्रा मदद करेगी. समय के साथ निर्यात गति पकड़ता है और अर्थव्यवस्था विदेश में सक्षम होती है तो मुद्रा मजबूत होने लगती है.
देश और मुद्रा के बीच कारण-परिणाम वाले संबंध को कई लोग गलत ढंग से ले लेते हैं. मजबूत होती अर्थव्यवस्था को मजबूत होती मुद्रा मिलती है, जिसे पूंजी की आवक से मदद मिलती है. कार्य-कारण संबंध उलटी तरफ से नहीं चलता— कमजोर या ऊंची मुद्रास्फीति वाली अर्थव्यवस्था की मुद्रा को कृत्रिम ताकत देने से या उसे चढ़ाकर रखने से वह मजबूत नहीं बन जाती. इस तरह की नीति टिकाऊ नहीं होती, इससे पूंजी बाहर जा सकती है.
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जहां तक व्यापार की बात है, चार से ज्यादा दशकों से (नेहरू के स्वावलंबन वाले दौर समेत) भारत ने रुपये को चढ़ा कर रखा. इसलिए जबकि पूर्वी एशिया के देशों ने अपना व्यापार बढ़ाया, विश्व बाजार में भारत का हिस्सा 1947 में 2.5 प्रतिशत से 80 फीसदी गिरकर 0.5 फीसदी रह गया.
दो विरोधी तुलनाओं से बात साफ हो जाएगी. भारतीय रुपया पाकिस्तानी रुपये (अब एक रुपया 205 डॉलर के बराबर है) से इसलिए ज्यादा मजबूत रहा क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन बेहद गड़बड़ रहा. स्केल के दूसरे छोर पर थाई मुद्रा बाह्त कभी रुपये के 10 फीसदी प्रीमियम पर मिलती थी मगर आज वह ~ 2.20 के बराबर है.
मजबूत मुद्रा के बावजूद थाईलैंड ने अपना वार्षिक व्यापार सरप्लस कायम रखा है. भारत का व्यापार और मुद्रस्फीति का रेकॉर्ड 1991 में उसकी मुद्रा और दूसरी नीतियों को बाजार के अनुकूल बनाने के बाद बेहतर हुआ है। इसके बावजूद व्यापार घाटा अधिकतर वर्षों में बना रहा बावजूद इसके कि रुपये की कीमत गिरती रही. जाहिर है, अब तक के आर्थिक सुधार अपर्याप्त रहे हैं. भारत के नेतागण अगर मजबूत रुपया चाहते हैं तो उन्हें अर्थव्यवस्था, का बेहतर प्रबंधन करना पड़ेगा. मुद्रस्फीति पर लगाम लगानी होगी, उत्पादकता बढ़ानी होगी, आदि-आदि. रिजर्व बैंक रुपये को सहारा देने के लिए अरबों डॉलर खर्च करे, यह रास्ता गलत है.
तथ्य यह है कि हाल के दिनों को छोड़कर भारत में मुद्रास्फीति इसके महत्व वाले बाज़ारों में मुद्रास्फीति से ज्यादा रही है. जाहिर है, रुपये की घरेलू क्रय शक्ति की कमजोरी नीची विनिमय दर में परिलक्षित होगी. कामकाज के पैमाने को बदलिए, तभी रुपया रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के बिना अपने रंग में आएगा.
Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में फिर से आई गिरावट, जानिए RBI के खजाने में अब कितना बचा है
Foreign Exchange Reserves: एकबार फिर से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है. 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में यह 4.50 करोड़ डॉलर घटकर 528.37 अरब डॉलर पर आ गया. रुपए को संभालने के लिए डॉलर रिजर्व को लगातार बेचा जा रहा है.
Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 4.50 करोड़ डॉलर घटकर 528.37 अरब डॉलर पर आ गया. भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली. इससे पहले, सात अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 20.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 532.868 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. इसमें इस साल अगस्त के बाद से पहली बार किसी साप्ताह में वृद्धि हुई थी. एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
गिरते रुपए को संभालने के लिए डॉलर रिजर्व का इस्तेमाल
देश का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कई हफ्तों से लगातार कम हो रही है. दरअसल तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में डॉलर के मुकाबले तेजी से गिरते रुपए को संभालने के लिए आरबीआई ने इस विदेशी मुद्रा भंडार के एक हिस्से का इस्तेमाल किया है. आंकड़ों के अनुसार, 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 2.828 अरब डॉलर घटकर 468.668 अरब डॉलर रह गयीं. एफसीए असल में समग्र भंडार का एक प्रमुख हिस्सा होता है.
गोल्ड रिजर्व में 1.35 अरब डॉलर का इजाफा
डॉलर के संदर्भ में एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्य वृद्धि या मूल्यह्रास का प्रभाव शामिल होता है. स्वर्ण भंडार के मूल्य में सात अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 1.35 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी. जबकि 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में यह 1.502 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 37.453 अरब डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक ने कहा कि विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 14.9 करोड़ डॉलर घटकर 17.433 अरब डॉलर रह गया है. वहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के पास रखी भारत की आरक्षित निधि समीक्षाधीन सप्ताह में 2.3 करोड़ डॉलर घटकर 4.813 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गई.
रुपया 82.75 के स्तर पर बंद हुआ
इधर अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपया शुक्रवार को चार पैसे की तेजी के साथ 82.75 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ. रुपए में शुरू में गिरावट आई थी लेकिन घरेलू शेयर बाजार में तेजी के साथ यह बढ़त में बंद हुआ. अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 82.89 पर खुला और बाद में 82.59 के उच्च स्तर तथा 82.91 के निचले स्तर को छूने के बाद अंत में गुरुवार के बंद भाव के मुकाबले चार पैसे मजबूत होकर 82.75 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. गुरुवार को रुपया अपने सर्वकालिक निम्न स्तर से उबरकर 21 पैसे की तेजी के साथ 82.79 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.
Foreign Exchange Reserves: दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, फिर से आई 3.84 बिलियन डॉलर की गिरावट
Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में फिर से 3.84 बिलियन डॉलर की गिरावट आई और यह दो सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया. रुपए को सपोर्ट करने के लिए रिजर्व बैंक इस साल अब तक 100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका है.
Foreign Exchange Reserves: देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट जारी है. 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में यह 3.847 बिलियन डॉलर घटकर 524.52 बिलियन डॉलर रह गया. यह दो सालों का निचला स्तर है. यह जुलाई 2020 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर है. इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 बिलियन डॉलर घटकर 528.37 बिलियन डॉलर रह गया था. पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होती देखी जा रही है. एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
फॉरन करेंसी असेट्स में 3.59 बिलियन डॉलर की गिरावट
देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि रुपए की गिरावट को थामने के लिए केन्द्रीय बैंक मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है. रिजर्व बैंक द्वारा शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली, विदेशीमुद्रा आस्तियां (FCA) 3.593 बिलियन डॉलर घटकर 465.075 बिलियन डॉलर रह गयीं.
गोल्ड रिजर्व में 24.7 करोड़ डॉलर की गिरावट
आंकड़ों के अनुसार देश का स्वर्ण भंडार मूल्य के संदर्भ में 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 बिलियन डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक ने कहा कि विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.44 बिलियन डॉलर हो गया है.
100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका RBI
इधर रुपए की वैल्यु लगातार घट रही है. डॉलर के मुकाबले रुपया 83 के स्तर को भी पार कर गया है. रुपए को संभालने के लिए रिजर्व बैंक इस साल अब तक 100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका है. रुपए में इस साल अब तक 12 फीसदी की गिरावट आ चुकी है.
आज फिर रुपए में आई 14 पैसे की गिरावट
आज हफ्ते के आखिरी दिन यह 14 पैसे की गिरावट के साथ 82.47 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 48 पैसे की उछाल के साथ 82.33 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. शेयरखान बाइ बीएनपी परिबा में रिसर्च ऐनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा, ‘‘भारतीय रुपया एक सीमित दायरे में रहा. मजबूत डॉलर सूचकांक ने रुपए पर दबाव डाला लेकिन सकारात्मक घरेलू बाजारों और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी से रुपए को थोड़ा समर्थन मिला. विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी रुपए को निचले स्तर पर संभाला.’’
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