सऊदी अरब को साधने में क्यों लगा है चीन?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सउदी अरब पहुँचे हैं, जहाँ वो चीन-खाड़ी देश के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे.

छह साल के बाद सउदी अरब की यात्रा के दौरान शी जिनपिंग किंग सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों अलावा प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी मुलाक़ात करेंगे.

शी जिनपिंग ने साल 2016 में सउदी अरब, ईरान और मिस्र का दौरा किया था और उनके बीच कूटनीतिक समझौते भी हुए थे. समाचार एजेंसी शिनुआ के अनुसार, चीन अब तक अरब देशों और अरब लीग के साथ 12 कूटनीतिक समझौते कर चुका है.

20 अरब देशों, अरब लीग और चीन के बीच बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को मिलकर तैयार करने का समझौता भी किया जा चुका है. ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रकचर के क्षेत्र में 200 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं.

साल 2021 में चीन और अरब देशों के बीच 330 अरब डॉलर का साझा व्यापार हुआ जो पिछले साल के मुक़ाबले 37 फ़ीसदी अधिक था.

खाड़ी देशों के शिखर सम्मेलन में ऊर्जा से लेकर सुरक्षा और निवेश में क़रीब 29 अरब डॉलर के समझौते की बात कही जा रही है.

मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में शी जिनपिंग की सऊदी अरब की यात्रा को काफ़ी अहम माना जा रहा है.

ख़ासकर रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग और तेल की क़ीमतों को लेकर चल रही उठापटक को नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों लेकर.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सऊदी अरब के दौरे से तेल की मार झेल रहे अमेरिका की चिंता बढ़ सकती है.

अमेरिका और सउदी अरब का 'तेल के बदले सुरक्षा' पर आधारित तक़रीबन सात दशक पुराना रिश्ता हाल के दिनों में यूक्रेन की जंग और कच्चे तेल की सप्लाई को लेकर बेहद तनावपूर्ण रहा है.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कुछ महीने पहले यह तक कह दिया था कि सऊदी अरब को तेल की कटौती के नतीजे भुगतने होंगे.नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों

लेकिन इसके बावजूद तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस ने सप्लाई कम करने के अपने फ़ैसले में किसी तरह का बदलाव नहीं किया.

तेल की कम सप्लाई से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें बढ़ रही हैं और इसका असर पश्चिमी देशों पर पड़ रहा है.

साथ ही ये भी समझा जाता है कि तेल की बढ़ी क़ीमतों के चलते रूस पर आर्थिक प्रतिबंघ के बावजूद ख़रीद जारी है जिससे उसे यूक्रेन की जंग जारी रखने के लिए धन मिल पा रहा है.

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सऊदी अरब की रणनीति

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सऊदी अरब के दौरे पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार फ़ज़्ज़ुर रहमान ने बीबीसी से कहा कि ये सब सऊदी अरब की अमेरिका से परे देखने और तेल पर निर्भरता कम करने की रणनीति का हिस्सा है.

कई अरब देशों में भारतीय राजदूत के तौर पर काम कर चुके अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि ये सईदी अरब नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों की लुक-ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा है जिसके तहत वो चीन, भारत, जापान जैसे देशों से रिश्ते मज़बूत कर रहा है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अरब-चीन शिखर सम्मेलन के नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों लिए खाड़ी और उत्तरी अफ्रीक़ा के नेताओं को पहले ही न्योता भेजा नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों जा चुका है.

शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान करेंगे और इसमें आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने और विकास के मुद्दों पर चर्चा होगी.

चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है, "चीन यात्रा का इस्तेमाल अरब देशों के साथ पारंपरिक रिश्तों के आगे बढ़ाने के मौक़े के तौर पर करेगा, सभी क्षेत्रों में संबंधों को और गहरा करेगा, दोनों संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा और भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक चीनी-अरब समुदाय का गठन करेगा."

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चीन को सबसे ज़्यादा कच्चा तेल

पिछले महीने के आँकड़ों के अनुसार, सऊदी अरब ने चीन नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों को कच्चे तेल की सबसे अधिक सप्लाई की. चीन सऊदी अरब को इस बात के लिए भी राज़ी करने की कोशिश कर रहा है कि कुछ व्यापार के लिए भुगतान की मुद्रा डॉलर की बजाय युआन (चीनी करेंसी) हो.

खाड़ी देशों ख़ास तौर पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की ओर से अमेरिका से परे देखने और नई राह तैयार करने की कई वजहें बताई जा रही हैं.

इनमें गारंटी के बावजूद अरब देशों को सुरक्षा मुहैया कराने में (ईरान से) नाकामी, और अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, सीरिया और लीबिया में अमेरिकी विदेश नीति की नाकामियाँ शामिल हैं.

फ़ज्जुर रहमान कहते हैं कि जिस तरह से नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों अमेरिका ने पुराने साथी मिस्र के होस्नी मुबारक और ट्यूनीशिया वगैरह को अधर में छोड़ दिया, उसके बाद अरब देशों में अमेरिका को लेकर भरोसे की कमी पैदा हुई है.

2016 के नोटबंदी के फैसले से जुड़े रिकॉर्ड जमा करें: सुप्रीम कोर्ट

केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों ने किया और आरबीआई का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने किया और कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम और श्याम दीवान पेश हुए।

याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते हुए शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को 10 दिसंबर तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया।

एजी ने दलील दी कि वह संबंधित रिकॉर्ड सीलबंद लिफाफे में जमा करेंगे।

मंगलवार को, न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अदालतें फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेंगी, लेकिन यह हमेशा उस तरीके पर जा सकती है, जिस तरह से इसे लिया गया था, दो चीजें पूरी तरह से अलग हैं।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, क्योंकि यह एक आर्थिक नीति है, अदालत हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकती। सरकार जानती है कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन इसका क्या सबूत है कि वह निर्णय लेते समय इन बातों को ध्यान में रखती है।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए चिदंबरम ने कहा कि सरकार को 2016 की नोटबंदी के संबंध में उन दस्तावेजों को अदालत के सामने रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार संसद के माध्यम से कोई मार्ग अपनाती तो सांसद नीति को रोक देते, लेकिन उन्होंने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में, केंद्रीय बैंक ने नोटबंदी का विरोध किया और उन्होंने विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया।

उन्होंने अदालत से दस्तावेजों को देखने का आग्रह करते नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों हुए यह नोटिस करने का आग्रह किया कि क्या निर्णय लेना उचित था और क्या यह मनमाना नहीं था।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों की कानूनी निविदा को वापस लेने का निर्णय परिवर्तनकारी आर्थिक नीति कदमों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण कदमों में से एक था नई विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों और यह निर्णय आरबीआई के साथ व्यापक परामर्श और अग्रिम तैयारियों के बाद लिया गया था।

केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा, कुल मुद्रा मूल्य के एक महत्वपूर्ण हिस्से के कानूनी निविदा चरित्र की वापसी एक सुविचारित निर्णय था। यह आरबीआई के साथ व्यापक परामर्श और अग्रिम तैयारियों के बाद लिया गया था।

उन्होंने आगे कहा कि फेक करेंसी, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए विमुद्रीकरण भी बड़ी रणनीति का एक हिस्सा था।

08 नवंबर 2016 को जारी अधिसूचना नकली नोटों के खतरे से लड़ने, बेहिसाब संपत्ति के भंडारण और विध्वंसक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए एक बड़ा कदम था।

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