5. देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल

1965 के आस-पास हालात बिगड़ने लगे. एक तरफ तो सरकार का बजट पहले ही गड़बड़ था दूसरा सरकार के पास कोई भी सेविंग नहीं थी. इसके अलावा, इंडो-चाइना 1962 की जंग और उसके बाद इंडो-पाक जंग की तैयारी ने सेना का बजट बहुत बढ़ा दिया था. इसी के साथ, विदेशी मदद मिलनी भी बंद हो गई थी और उस समय रुपया टूटकर 7.57 प्रति डॉलर पर चला गया था. ये दौर था 1966 का और रुपए में 58 प्रतिशत की गिरावट थी.

Rupee Record Low: डॉलर के मुकाबले रसातल में जा रहा है रुपया ! कारण क्या हैं और आप पर कैसे असर पड़ेगा ?

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले हमारा रुपया गिरावट के रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है. फिलहाल रुपया अपने पूरे जीवनकाल में सबसे नीचे के स्तर पर पहुंच गया है. आखिर इसकी वजहें क्या हैं और हम पर इसका क्या असर पड़ेगा?

अमेरिकी डॉलर (U.S. Dollar) के मुकाबले हमारा रूपया गिरावट के रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है. शुक्रवार को भी एक डॉलर के मुकाबले रुपया (rupee against dollar) 79.88 के वैल्यू पर रहा. दूसरे शब्दों में कहें तो बीते 5 दिनों से एक डॉलर मोटा-माटी 80 रुपये के आस-पास बना हुआ है जो रूपये के पूरे जीवनकाल में सबसे ज्यादा है. रुपये के रसातल में डाने का असर ये हो रहा है कि जनता को महंगाई की मार (Effect of inflation) झेलनी पड़ रही है. होमलोन या कारलोन तो छोड़िए किचन से लेकर बच्चों की फीस तक पर इसका असर पड़ रहा है. आइए जानते हैं इसकी क्या वजहें, क्या असर पड़ रहा और क्या ऐसी स्थिति में भी हमारे लिए खुश होने की वजह है क्या?

पहला विदेशी कर्ज..

आज़ादी के समय भारत की बैलेंस शीट में किसी भी तरह का कोई भी विदेशी कर्ज नहीं था. 1951 के बाद पंच वर्षीय योजना के तहत भारत ने विदेशी कर्ज लेना शुरू किया. उस समय तक भी रुपए को पाउंड की तरह देखा जाता था, लेकिन 18 सितंबर 1949 को पाउंट स्टर्लिंग की वैल्यू कम होने के बाद रुपए की जमीन भी खिसकने लगी और रुपए की कीमत कम हो गई.

बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था होने के कारण भारत के लिए ये आसान नहीं था कि वो अपने आयात कम कर सके. इससे लगातार पेमेंट करने की क्षमता कम होती रही. 1960 में बढ़ते विदेशी कर्ज और आयात के बावजूद भारत ने अगले एक दशक तक मामला काबू में रखा. IANS के मुताबिक रुपया 4.79 प्रति डॉलर के रेट में 1950 और 60 के दशक में रहा. उस दौरान लगातार मिलने वाली बाह्य मदद के कारण रुपए की गिरावट कम रही.

युद्ध और सूखे में फंसा रुपया..

1965 के आस-पास हालात बिगड़ने लगे. एक तरफ तो सरकार का बजट पहले ही गड़बड़ था, दूसरा सरकार के पास कोई भी सेविंग नहीं थी. इसके अलावा, इंडो-चाइना 1962 की जंग और उसके बाद इंडो-पाक जंग की तैयारी ने सेना का बजट बहुत बढ़ा दिया था. इसी के साथ, विदेशी मदद मिलनी भी बंद हो गई थी और उस समय रुपया टूटकर 7.57 प्रति डॉलर पर चला गया था. ये दौर था 1966 का और रुपए में 58 प्रतिशत की गिरावट थी.

अगले 25 सालों में रुपए की कीमत धीरे-धीरे गिरती रही. 1971 में रुपए और पाउंड के बीच का संबंध लगभग खत्म हो गया और इसे सीधे तौर पर डॉलर से लिंक कर दिया गया. ऐसा कई कारणों से हुआ, जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी हालत, राजनैतिक स्तर पर असुरक्षा साथ ही वैश्विक समस्याएं जैसे डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? 1973 का अरब तेल संकट जिसके कारण भारत के व्यापार में और ज्यादा घाटा हो गया था.

पहला खाड़ी युद्ध 1990 को हुआ था और इसके कारण तेल की कीमतें काफी बढ़ गई थीं. ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, सोवियत यूनियन का टूटना और भारत पर कर्ज होना ये सब उस जौर में महंगाई बढ़ने और रुपए की कीमत घटने के लिए दोषी थे. जून 1991 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 1124 मिलियन डॉलर हो गया. ये सिर्फ तीन हफ्तों के आयात के लिए ही काफी था. इसके कारण 18.5% तक रुपए की कीमत गिर गई और इस दौर में रुपया 26 प्रति डॉलर पहुंच गया.

1990 का वो शर्मनाक साल..

पहला खाड़ी युद्ध 1990 को हुआ था. इसके कारण तेल की कीमतें काफी बढ़ गईं. ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, सोवियत यूनियन का टूटना और भारत पर कर्ज होना ये सब उस दौर में महंगाई बढ़ने और रुपए की कीमत घटाने के लिए दोषी थे. जून 1991 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 1124 मिलियन डॉलर हो गया. ये सिर्फ तीन हफ्तों के आयात के लिए ही काफी था. इसके कारण 18.5% तक रुपए की कीमत गिर गई और इस दौर में रुपया 26 प्रति डॉलर पहुंच गया. नतीजा रुपए का अवमूल्‍यन करना पड़ा और विदेशी मुद्रा के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा.

1993 में सरकार ने एक संयुक्त एक्सचेंज रेट बनाया. रुपए को आज़ादी मिली. एक्सचेंज रेट तय करने के बाद सरकार ने रुपया को बाजार के हवाले कर दिया. रुपए की कीमत तय करने में RBI का दखल सिर्फ इमरजेंसी (अस्थिरता) वाले हालात के लिए रखा गया. नतीजा ये हुआ कि रुपया 31.37 प्रति डॉलर पर पहुंच गया. अगले एक दशक तक रुपए ने सालाना लगभग 5% की गिरावट दर्ज की. 2002-03 के दौरान यह एक डॉलर के मुकाबले 48.40 रुपए पर खड़ा था.

वैश्विक आर्थिक संकट

2007 में रुपए ने डॉलर के खिलाफ 39 का आंकड़ा पार किया. लेकिन 2008 के संकट ने इसे और गिरा दिया और इसी के साथ रुपए ने 51 का आंकड़ा छुआ. उसके बाद 2012 में सरकार का बजट और गड़बड़ाया इस समय स्थिती ग्रीस-स्पेन कर्ज संकट के कारण बिगड़ी और रुपया 56 पर पहुंच गया.

अनियंत्रित तेल की कीमतों और विदेशी आयात के कारण रुपया और गिरा. वैश्विक आर्थिक संकटों में इस बार तुर्की का नाम है जिसकी वजह से रुपया 70 पार कर गया है.

रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान

1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? 88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

Falling Indian Currency

भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.

डॉलर के मुकाबले 80 के स्तर तक गिर सकता है रुपया, जानें क्यों आ रही ये गिरावट?


नई दिल्ली: विदेशी निवेशकों के भारतीय बाजार से लगातार बाहर निकलने से रुपया पिछले कुछ महीनों में कई बार अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? गया है. एफपीआई के बाहर निकलने के अलावा रुपये में गिरावट का कारण डॉलर इंडेक्स में बढ़ोतरी और कच्चे तेल का महंगा होना है. विशेषज्ञों ने कहा कि आने वाले कुछ महीनों में रुपया चुनौतियों का सामना करेगा और मध्यम अवधि में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के स्तर को छू सकता है.

रुपया पिछले कुछ महीनों से लगातार गिर रहा है. 12 जनवरी, 2022 को रुपया 73.78 डॉलर प्रति डॉलर पर था और तब से यह छह महीने से भी कम समय में 5 रुपये से अधिक गिर गया है. इसने शुक्रवार को 79.11 के अपने सर्वकालिक निचले स्तर को छुआ.

यह भी पढ़ें | नाइट कल्चर के ठीयो पर रात को पुलिस की डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? दबिश, कई दुकानदारों पर कार्रवाई

इस साल अब तक इक्विटी बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) 2.13 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके हैं. जून में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 51,000 करोड़ रुपये निकाल लिए. कोटक सिक्योरिटीज के अनिंद्य बनर्जी ने कहा है कि भारत में आर्थिक विकास मजबूत रहा है लेकिन वैश्विक बाजार में उथल-पुथल और फेड की बढ़ोतरी ने भारत में बड़े निवेश को रोक दिया है. साथ ही कच्चा तेल भी 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बना हुआ है.

बनर्जी ने कहा कि अगले 6-9 महीनों में रुपये को वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती, अमेरिकी डॉलर की तरलता में कमी और तेल की ऊंची कीमतों से चुनौतियों का सामना करने पड़सकता है. उन्होंने कहा कि अगर वैश्विक स्तर पर डॉलर में तेजी बनी रहती है रुपया गिरकर 80 तक पहुंच जाएगा.

रुपया गिरने से आयात महंगा जिससे वस्तुओं व सेवाएं के दाम में और तेजी आएगी. सरल शब्दों में कहें तो महंगाई बढ़ जाएगी. विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों पर भी इसका असर पड़ेगा. यहां से जितनी रकम पहले खर्च के लिए भेजी जाती अब वह एक्सचेंज के बाद पहले के मुकाबले कम हो जाएगी. इसके अलावा चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाएगा.

ऐसी रही इस सप्ताह रुपये की चाल

  • गुरुवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 89 पैसे की कमजोरी के साथ 80.89 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
  • बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 22 पैसे की कमजोरी के साथ 79.98 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
  • मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 2 पैसे की मजबूती के साथ 79.75 रुपये डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? के स्तर पर बंद हुआ।
  • सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 3 पैसे की कमजोरी के साथ 79.77 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।

भारतीय रुपये के कमजोर होने की कई वजह होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण डॉलर की डिमांड बढ़ना (US dollar strong) होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कैसी भी उथल पुथल से निवेशक प्रभावित होता है और घबराकर डॉलर खरीदने लगता है जिससे उसकी डिमांड बढ़ जाती है और शेष देशों की मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है जिसमें भारतीय रुपया भी प्रभावित होता है।

रेटिंग: 4.75
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 830