भोपाल. कॉर्बन सोखो और पैसा कमाओ। अगर सबकुछ योजनानुसार रहा तो प्रदेश के 23 जिलों के किसान कार्बन अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें से भी पैसा कमा सकेंगे। यह संभव होगा कॉर्बन ट्रेडिंग से। इस संबंध में वन विभाग ने जर्मनी की एक एजेंसी के सहयोग से हरदा जिले में पॉयलट प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है। हाल ही में वन विभाग की क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म सेल (सीडीएम) और जर्मनी की जर्मन डेवलपमेंट कापरेरेशन (जीआईजेड) की एक टीम ने हरदा जिले के करीब 40 गांवों में जाकर इस बात की पड़ताल की है कि वहां के किसान इस कार्य में कितने उत्सुक हैं। नतीजे उत्साहवर्धक आए हैं, जिसके परिणामस्वरूप जिले में भुआणा कॉर्बन ट्रेडिंग समिति बनाई गई है। इस समिति के माध्यम से किसानों को अपनी पड़त भूमि पर वृक्ष लगाने को प्रेरित किया जाएगा। जिले में करीब 400 हेक्टेयर जमीन पर वृक्ष लगाए जाएंगे। इसमें वृक्ष जितनी कॉर्बन सोखेंगे, समिति को उतने ही कार्बन क्रेडिट दिए जाएंगे। ये क्रेडिट हर पांच साल में एक स्वतंत्र एजेंसी के आकलन के बाद दिए जाएंगे। यह आकलन वैज्ञानिक फॉर्मूले के आधार पर किया जाता है। इन क्रेडिट को बाद में अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें पैसों में भुनाया जा सकेगा। इसका एक फायदा यह भी होगा कि लगाए गए वृक्षों के उत्पादों पर किसानों की समिति का अधिकार रहेगा। इससे मिट्टी का अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें कटाव भी रुकेगा। ये जिले होंगे शामिल : भोपाल, सीहोर, रायसेन, विदिशा, सागर, दमोह, जबलपुर, नरसिंहपुर, मंडला, बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, हरदा, खंडवा, खरगोन, धार, इंदौर, देवास, शिवपुरी, ग्वालियर और रीवा। क्यों है जरूरी?अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें क्योटो प्रोटोकॉल के तहत विकसित देशों को वर्ष 1990 के स्तर से कॉर्बन उत्सर्जन में 5.2 फीसदी की कमी करनी है। इस प्रोटोकॉल की सूची-1 में विकसित देश शामिल हैं, जो प्रदूषण फैला रहे हैं। सूची-दो में भारत, चीन जैसे विकासशील देश हैं। प्रोटोकॉल में प्रावधान है कि अगर सूची-1 के देश अपनी परिस्थितियों के कारण प्रदूषण कम नहीं कर सकते तो वे सूची-2 में शामिल देशों के साथ एडजस्टमेंट कर सकते हैं। यानी विकासशील देश उतनी मात्रा में कॉर्बन डाइऑक्साइड को कम करें और उसके बदले में विकसित देशों से पैसा हासिल करें। अभी हमने हरदा जिले में इस योजना को शुरू किया है। कुछ माह में अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें इसका विस्तार सभी 23 जिलों में कर दिया जाएगा। - सौम्यजीत विश्वास, प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर, सीडीएम, वन विभाग यूं समझें कॉर्बन के अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें इस धंधे को कैसे पाएं कॉर्बन क्रेडिट हर धंधे की तरह इसमें भी दो पक्ष जरूरी हैं- एक खरीददार और दूसरा बेचवाल। इसमें भारत बेचवाल है। भारत की संस्थाएं कार्बन अवशोषित करेंगी। भारत में अलग-अलग एजेंसियां और विभाग इस कार्य में लगे हैं। एक टन कॉर्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने पर एक कॉर्बन क्रेडिट मिलता है। इसे सर्टिफाइड एमिएशन रिडक्शन (सीईआर) कहा जाता है। इसे कुछ एजेंसियां देती हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी संस्था ने 100 टन कॉर्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित किया तो उसे 100 सीईआर मिलेंगे। विकसित देशों की वे कंपनियां जो स्वयं प्रदूषण कम नहीं कर सकती हैं, वे उसके बदले में ये सीईआर खरीद लेंगी। कैसे करें कॉर्बन ट्रेडिंग सीईआर का बाजार मूल्य बदलता रहता है, जैसे शेयर बाजार में शेयरों के दाम बदलते हैं। वर्तमान में एक सीईआर का मूल्य करीब दो यूरो चल रहा है। इनकी ट्रेडिंग कॉर्बन ट्रेडिंग अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें एक्सचेंज के जरिये की जा सकती है। ऐसे कई एक्सचेंज विकसित देशों में हैं। भारत में ऐसी एजेंसियां हैं जो इन एक्सचेंजों में रजिस्टर्ड हैं और उनके माध्यम से कॉर्बन ट्रेडिंग की जा सकती है। अगर किसी संस्था के पास 100 सीईआर है तो वह चाहे तो 50 सीईआर अभी बेचकर कुछ यूरो हासिल कर सकती है। शेष सीईआर वह दाम बढ़ने अपनी ट्रेडिंग योजना विकसित करें पर बेच सकती है। किस तरह फायदेमंद मान लो किसी विकसित देश में कोई फैक्टरी हर साल एक लाख टन कॉर्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है। अगर वहां की सरकार ने उसके लिए 80 हजार टन की सीमा रखी है तो इसका मतलब है कि उस फैक्टरी को या तो 20 हजार टन की कटौती करनी होगी या फिर उसके बराबर के सीईआर खरीदने होंगे। सीईआर पर खर्च राशि फैक्टरी की बैलेंस शीट में आती है। इसका मतलब है कि कोई कंपनी जितने जयादा सीईआर खरीदेगी, उसकी छवि उतनी ही पर्यावरण विरोधी बनेगी। इसलिए अंतत: फैक्टरियां प्रदूषण कम करने के लिए ही मजबूर होगी।
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