What is Formula 72: क्या है फॉर्मूला 72, जो चुटकी में बता देगा आपका पैसा कितने दिन में होगा डबल, यहां समझिए पूरा गणित

IPO में निवेश का बना लिया है प्लान, तो इन बातों का जरूर रख लें ख्याल, वरना हो सकता है नुकसान!

किसी भी नई कंपनी के IPO में निवेश करने से पहले उसके प्रोडक्ट और उसकी मार्केट में हिस्सेदारी की जानकारी होना काफी जरूरी है। क्योंकि कई बार छोटी कंपनी भी जोर-शोर से IPO लेकर आती हैं और बाद में लोगों को इसी वजह से काफी नुकसान होता है।

IPO में निवेश का बना लिया है प्लान, तो इन बातों का जरूर रख लें ख्याल, वरना हो सकता है नुकसान!

आईपीओ में निवेश करने के लिए कुछ बुनियादी चीजों को जरूर जानना चाहिए। (सांकेतिक फोटो)

आदिल शेट्टी. भारतीय शेयर बाजार में इस समय नए आईपीओ की बहार आई हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि, स्टॉक मार्केट अभी तक के इतिहास में सबसे शीर्ष पर है। जिसके चलते नई कंपनियां शेयर बाजार में रजिस्टर हो रही है और अपना आईपीओ लॉन्च कर रही हैं। बीतें 2 साल में कई आईपीओ लॉन्च हुए हैं। निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें जिसमें कई ने काफी अच्छा मुनाफा कमाया है तो कई आईपीओ बुरी तरह से पिट गए हैं। ऐसे में अगर आप भी किसी नए आईपीओ में निवेश करने की सोच रहे हैं। तो इससे पहले आपको आईपीओ और इसमें निवेश करने के तरीके के बारे में कुछ जरूरी चीजों को जान लेना चाहिए। जिससे आपके नुकसान की संभावना कम होगी। आइए जानते हैं इसके बारे में…

क्या होता है IPO ? आसान भाषा में समझें तो किसी प्राईवेट कंपनी को पब्लिक कंपनी में बदलने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए IPO लाया जाता है। इसमें कोई भी प्राईवेट कंपनी SEBI से मंजूरी मिलने के बाद शेयर बाजार में लिस्टेंड होती है और इसके बाद अपने शेयर लोगों के लिए बाजार में पेश करती है। इस दौरान कंपनी अपने एक शेयर की न्यूनतम कीमत भी तय करती है। जिस पर आम लोग अपनी जरूरत के अनुसार शेयर खरीदते हैं। आपको बता दें IPO लाने का असली मकसद प्राईवेट कंपनियों का अपनी भविष्य की योजनाओं को पूरा करने के लिए पूंजी जुटाने का होता है। जिसमें आप शेयर खरीद कर कंपनी में भागीदार बन सकते है। जिसके बाद अगर कंपनी को मुनाफा होता है तो आपके शेयर की कीमत भी बढ़ती है और आपको भी मुनाफा होता है।

DRHP को गहराई से पढ़ें – डीआरएचपी किसी भी नए आईपीओ की जन्मकुंडली होती है। इसे आईपीओ के लॉन्च से पहले सिक्योरीटीज मार्केट रेगुलेटर यानी सिक्योरीटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) में जमा कराया जाता है। जिसमें कंपनी से जुड़ी विस्तृत जानकारी शामिल की जाती है। डीआरएचपी में कंपनी का कारोबार, पिछला परफॉर्मेंस, सम्पत्ति और देयताएं, आईपीओ के ज़रिए प्राप्त फंड्स की क्यों जरूरत है और वह इस फंड का क्या करेगी, और संभावित जोखिम फैक्टर्स, जो कंपनी के परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकते हैं। उसकी पूरी जानकारी होती है। अगर आप डीआरएचपी को पूरा पढ़ते है तो आपके नुकसान की संभावना बहुत कम हो जाती है।

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IPO से मिली पूंजी का उद्देश्य – कंपनी को पूंजी की आवश्यकता के बारे में ‘क्यों चाहिए’ फेक्टर को बहुत अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यदि कंपनी कर्ज में डूबी है और डीआरएचपी में यह उल्लेख किया जाता है कि प्राप्त फंड्स का इस्तेमाल मौजूदा कर्ज को चुकाने के लिए किया जाएगा, तो निवेशकों को इस प्रकार के इश्यू के प्रति सावधान हो जाना चाहिए। लेकिन, यदि उपयोग कर्ज के भुगतान और साथ ही विस्तार, दोनों उद्देश्यों से किया जाएगा, तो आप निवेश करने पर विचार कर सकते हैं।

प्रोमोटर्स और मैनेजमेंट को जानना जरूरी – जब भी आप नए IPO में निवेश करें तो सबसे पहले ये कंपनी किसके जरिए चलाई जा रही है। इसकी जानकारी हासिल करनी चाहिए। इसके साथ ही कंपनी के टॉप मैनंजमेंट में कौन किस पद पर है। इसकी भी जानकारी निवेश से पहले आपको होनी चाहिए। क्योंकि किसी भी कंपनी का भविष्य उसके मालिक और टॉप मैनेंजमेंट की योग्यता पर ही निर्भर करता है।

कंपनी की स्थिति का जानान जरूरी – किसी भी नई कंपनी के IPO में निवेश करने से पहले उसके प्रोडक्ट और उसकी मार्केट में हिस्सेदारी की जानकारी होना काफी जरूरी है। क्योंकि कई बार छोटी कंपनी भी जोर-शोर से IPO लेकर आती हैं और बाद में लोगों को इसी वजह से काफी नुकसान होता है।

IPO में जोखिम के फैक्टर्स – कंपनी द्वारा अपने डीआरएचपी में बताए गए जोखिम फैक्टर्स पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ये फिल्टर्स की तरह काम करते हैं और जब बात आईपीओ में निवेश करने की आती है, तो इन्हीं के आधार पर तय किया जाता है कि क्या आईपीओ में निवेश किया जाए अथवा नहीं।

निवेश के मंत्र 76: करना चाहते हैं शेयर बाजार में निवेश? तो फायदे में रहने के लिए जानिए इन फंडामेंटल्स के बारे में

निवेश

कम उम्र में ट्रेडिंग शुरू करना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह वित्तीय अनुशासन लाता है और पर्याप्त बचत के साथ भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार करता है। ज्ञान की कमी के कारण लंबे समय तक लोगों में शेयर बाजार में निवेश करने को लेकर हिचकिचाहट थी। उन्हें पारंपरिक दृष्टिकोण का ही पता था जिसमें उन्हें शेयर खरीदने या बेचने के लिए स्टॉक ब्रोकर के पीछे जाना पड़ता था। इस प्रयास में भारी-भरकम ब्रोकरेज फीस और अन्य छिपी लागत भी हावी थी। अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं और आपको इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है, तो ये खबर आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। हम आपको कुछ ऐसे अनुपातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप आसानी से शेयर का मूल्यांकन कर सकेंगे।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (पीई)
किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू का पता लगाने के लिए पीई रेश्यो का इस्तेमाल होता है। यह शेयर की कीमत और शेयर से आय का अनुपात होता है। मालूम हो कि शेयर से आय को ईपीएस भी कहते हैं। आसान भाषा में समझें, तो इसका अर्थ है अर्निंग प्रति शेयर। यह एक ही सेक्टर में दो कंपनियों के बीच चयन में मददगार होता है।
पी/ई = (प्रति शेयर मूल्य/प्रति शेयर आय)

पीईजी अनुपात
पीईजी अनुपात का उपयोग कंपनी की आय में वृद्धि को ध्यान में रखकर शेयर के मूल्य को खोजने में किया जाता है। यह पीई की तुलना में ज्यादा उपयोगी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पीई कंपनी की विकास दर को अनदेखा कर देता है, लेकिन पीईजी अनुपात में ऐसा नहीं है।
पीईजी अनुपात = (पीई अनुपात/आय में अनुमानित वार्षिक वृद्धि)

प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात को कंपनी का शुद्ध संपत्ति मूल्य भी कहा जाता है। आसान भाषा में समझें, तो यह कुल संपत्ति माइनस अमूर्त संपत्ति और देनदारियों के रूप में गणना कर निकलता है। जिन कंपनियों का प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात कम होता है, उन्हें कम मूल्यवान माना जाता है।
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात = (प्रति शेयर बाजार मूल्य/प्रति शेयर बुक वैल्यू)

प्रति शेयर आय (ईपीएस)
प्रति शेयर आय (ईपीएस) प्रत्येक शेयर के लिए आवंटित कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है। यह कंपनी की लाभप्रदता के संकेतक के रूप में कार्य करता है। प्रति शेयर आय एक वित्तीय अनुपात है, जो शुद्ध आमदनी को आम में विभाजित करता है। मालूम हो कि प्रति शेयर आय बढ़ाने वाली कंपनियों के शेयर को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है।
ईपीएस = (शुद्ध आय/कुल शेयर)

रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई)
रिटर्न ऑन इक्विटी यानी इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) दर्शाता है कि कंपनी शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कितनी अच्छी है। यह शेयरधारक को इक्विटी के फीसदी के रूप में निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें दी गई शुद्ध आय की राशि है। अक्सर निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे उन्हीं कंपनियों के शेयरों में निवेश करें, जिनका पिछले तीन सालों का औसत आरओई ब्याज दर और महंगाई दर की कुल राशि से ज्यादा है।
आरओई = (शुद्ध आय/शेयरधारकों का कुल फंड)

कम उम्र में ट्रेडिंग शुरू करना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह वित्तीय अनुशासन लाता है और पर्याप्त बचत के साथ भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार करता है। ज्ञान की कमी के कारण लंबे समय तक लोगों में शेयर बाजार में निवेश करने को लेकर हिचकिचाहट थी। उन्हें पारंपरिक दृष्टिकोण का ही पता था जिसमें उन्हें शेयर खरीदने या बेचने के लिए स्टॉक ब्रोकर के पीछे जाना पड़ता था। इस प्रयास में भारी-भरकम ब्रोकरेज फीस और अन्य छिपी लागत भी हावी थी। अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं और आपको इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है, तो ये खबर आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। हम आपको कुछ ऐसे अनुपातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप आसानी से शेयर का मूल्यांकन कर सकेंगे।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (पीई)
किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू का पता लगाने के लिए पीई रेश्यो का इस्तेमाल होता है। यह शेयर की कीमत और शेयर से आय का अनुपात होता है। मालूम हो कि शेयर से आय को ईपीएस भी कहते हैं। आसान भाषा में समझें, तो इसका अर्थ है अर्निंग प्रति शेयर। यह एक ही सेक्टर में दो कंपनियों के बीच चयन में मददगार होता है।

पी/ई = (प्रति शेयर मूल्य/प्रति शेयर आय)

पीईजी अनुपात
पीईजी अनुपात का उपयोग कंपनी की आय में वृद्धि को ध्यान में रखकर शेयर के मूल्य को खोजने में किया जाता है। यह पीई की तुलना में ज्यादा उपयोगी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पीई कंपनी की विकास दर को अनदेखा कर देता है, लेकिन पीईजी अनुपात में ऐसा नहीं है।

पीईजी अनुपात = (पीई अनुपात/आय में अनुमानित वार्षिक वृद्धि)

प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात को कंपनी का शुद्ध संपत्ति मूल्य भी कहा जाता है। आसान भाषा में समझें, तो यह कुल संपत्ति माइनस अमूर्त संपत्ति और देनदारियों के रूप में गणना कर निकलता है। जिन कंपनियों का प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात कम होता है, उन्हें कम मूल्यवान माना जाता है।
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात = (प्रति शेयर बाजार मूल्य/प्रति शेयर बुक वैल्यू)

प्रति शेयर आय (ईपीएस)
प्रति शेयर आय (ईपीएस) प्रत्येक शेयर के लिए आवंटित कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है। यह कंपनी की लाभप्रदता के संकेतक के रूप में कार्य करता है। प्रति शेयर आय एक वित्तीय अनुपात है, जो शुद्ध आमदनी को आम में विभाजित करता है। मालूम हो कि प्रति शेयर आय बढ़ाने वाली कंपनियों के शेयर को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है।
ईपीएस = (शुद्ध आय/कुल शेयर)

रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई)
रिटर्न ऑन इक्विटी यानी इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) दर्शाता है कि कंपनी शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कितनी अच्छी है। यह शेयरधारक को इक्विटी के फीसदी के रूप निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें में दी गई शुद्ध आय की राशि है। अक्सर निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे उन्हीं कंपनियों के शेयरों में निवेश करें, जिनका पिछले तीन सालों का औसत आरओई ब्याज दर और महंगाई दर की कुल राशि से ज्यादा है।
आरओई = (शुद्ध आय/शेयरधारकों का कुल फंड)

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Stock Market Investment Tips: स्टॉक मार्केट के बड़े निवेशक के तौर पर वारेन बफे, चार्ली मंगर का नाम लिया जाता है. वे लोग भी निवेश करते समय कंपाउंडिंग को बहुत अधिक महत्व देते हैं.

Stock Market Investment Tips

अब मान लेते हैं कि तीनों निवेशकों ने एक साथ जुलाई 1990 से सितंबर 2022 तक Nifty50 में हर महीने 10000 हजार रुपए निवेश किया था. इन तीनों द्वारा 30 साल से अधिक समय तक निवेश किया गया है. अब इन तीनों निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें की स्थिति क्या होगी. तो इसका जवाब आसान है लकी निवेशक का निवेश किया हुआ पैसा सबसे अधिक होगा. वही दूसरे नंबर पर अनुशासित निवेशक होंगे. वहीं तीसरे नंबर पर अपने अनलकी निवेशक होंगे. पर यहां सोचने वाली बात यह है कि लकी निवेशक और अनुशासित निवेशक के 30 साल से अधिक इन्वेस्टमेंट के बाद दोनों के पोर्टफोलियो में या निवेश रिटर्न में कितना अंतर है.

लकी निवेशक और अनुशासित निवेशक के बीच तुलना करने से पहले एक सबसे जरूरी बात यह सोचिए कि क्या कोई लकी निवेशक इतना भी किस्मत का धनी हो सकता है कि लगातार 30 साल से अधिक समय तक वह स्टॉक मार्केट में जब भी निवेश करें तो उसे हमेशा बॉटमलाइन (निचले लेवल) ही मिले. ऊपर दिए गए आंकड़े के हिसाब से अगर हम कैलकुलेशन करें तो पाते हैं कि लकी निवेशक का कुल पोर्टफोलियो निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें वैल्यू 2.48 करोड़ रुपए है. अनुशासित निवेशक का कुल पोर्टफोलियो वैल्यू 2.34 करोड़ों रुपए आता है.

इस हिसाब से देखें तो लकी निवेशक और अनुशासित निवेशक के बीच मात्र 5 पर्सेंट का ही अंतर है. जो अपने आप में आश्चर्य करने वाली बात है. साथ ही आंख खोलने वाले आंकड़े हैं. यहां पर भाग्य और अनुशासन दोनों लगभग बराबर ही हैं.

कंपाउंडिंग की शक्ति

लकी निवेशक और अनुशासित निवेशक के इस उदाहरण के माध्यम से हमें एक बात समझ में आती है कि बाजार में समय मार्केट के समय से अधिक महत्वपूर्ण होता है. आसान भाषा में कहें तो बाजार को एक निश्चित और लगातार समय देना अधिक महत्वपूर्ण है. साथिया में यहां पर एक सीख मिलती है कि सालों साल अपने किस्मत के भरोसे निवेश करने से अच्छा है कि हम अनुशासित रहकर निवेश करें. क्योंकि कंपाउंडिंग की शक्ति लॉन्ग टर्म में ही देखने को मिलती है.

What is Formula 72: क्या है फॉर्मूला 72, जो चुटकी में बता देगा आपका पैसा कितने दिन में होगा डबल, यहां समझिए पूरा गणित

What is Formula 72: हर कोई ऐसा निवेश करना चाहता है, जहां अधिक से अधिक रिटर्न मिले। हालांकि, कुछ लोग रिटर्न (How to understand return on investment) को अच्छे से समझ नहीं पाते हैं। ऐसे में आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप एक छोटे से फॉर्मूले के जरिए जान सकते हैं कि कितने सालों में आपके पैसे दोगुने (In what time your investment become double) हो जाएंगे। ये फॉर्मूला है रूल 72 (What is Rule 72), जो कैल्कुलेश कर देगा आसान। आइए जानते हैं इसके बारे में।

what is formula 72: know how you can calculated that in what time your investment become double

What is Formula 72: क्या है फॉर्मूला 72, जो चुटकी में बता देगा आपका पैसा कितने दिन में होगा डबल, यहां समझिए पूरा गणित

क्या है फॉर्मूला 72?

-72

इसे रूल 72 या नियम 72 भी कहा जाता है। इसकी मदद से आप ये आसानी से पता कर सकते हैं आपके पैसे किसी स्कीम में कितने दिनों में दोगुने हो जाएंगे। रूल 72 का इस्तेमाल कर के आप ये समझ सकते हैं कि आपको अपने फाइनेंशियल गोल हासिल करने में कितना वक्त लगेगा। इसके लिए आपको 72 को अपने निवेश पर मिलने वाले ब्याज से भाग देना होगा। आइए कुछ स्मॉल सेविंग्स स्कीमों और एफडी पर इस फॉर्मूले को लागू कर के देखते हैं।

बैंक एफडी से करते हैं शुरुआत

गारंटी के साथ रिटर्न पाने के लिए अधिकतर लोग बैंक एफडी कराना पसंद करते हैं। मान लेते हैं कि आप किसी बैंक में 5 लाख रुपयों की एफडी कराते हैं और उस पर आपको 7.25 फीसदी की दर से ब्याज मिल रहा है। अब अगर 72 को 7.25 से भाग दे दें तो 9.93 आएगा। यानी आपके पैसे दोगुने होने में 9.93 साल यानी करीब 119 महीने लगेंगे। इस तरह आप अपने निवेश पर रिटर्न को आसान भाषा में समझ सकते हैं।

सीनियर सिटिजन सेविंग्स स्कीम

हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि सीनियर सिटिजन सेविंग्स स्कीम की ब्याज दर 30 सितंबर 2021 तक नहीं बदलेगी। मौजूदा समय में इस स्कीम में 7.4 फीसदी की दर से ब्याज मिलता है। अगर 72 को 7.4 से भाग देते हैं तो 9.72 आता है। इसका मतलब हुआ कि आपके पैसे 9.72 सालों यानी करीब 116 महीनों में दोगुने हो जाएंगे। यह स्कीम सीनियर सिटिजन के लिए डिजाइन की गई है। इसकी मदद से अच्छा रिटायरमेंट फंड बनाया जा सकता है।

पब्लिक प्रोविडेंट फंड

पीपीएफ को भी लोग रिटायरमेंट फंड जुटाने के लिए खूब इस्तेमाल करते हैं। इसमें निवेश करने के कई फायदे होते हैं। एक तो इसका लॉक-इन पीरियड अधिक होता है तो पैसे जमा हो पाते हैं। वहीं इसमें लगाए पैसों, उस पर मिलेगा ब्याज और मेच्यरिटी पर मिली रकम तीनों ही टैक्स फ्री होती है। इसमें अभी 7.1 फीसदी ब्याज मिल रहा है। अगर 72 को 7.1 से भाग देते हैं तो 10.14 आता है। इसका मतलब हुआ कि 10.14 साल यानी करीब 122 महीनों में आपके निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें पैसे दोगुने हो जाएंगे।

सुकन्या समृद्धि योजना

यह अकाउंट बेटियों के बेहतर भविष्य के लिए खुलवाया जाता है। अगर आप भी अपने बेटी के लिए इसमें निवेश करते हैं तो आप भी जानना चाहते होंगे कि कब तक आपके पैसे दोगुने होंगे। मौजूदा समय में इस स्कीम में 7.6 फीसदी की दर से ब्याज मिल रहा है। अगर आप 72 को 7.6 से भाग देते हैं तो 9.47 आता है। यानी आपका पैसे 9.47 साल यानी करीब 113 महीनों में दोगुना हो जाएगा।

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