मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) क्या होता है?

मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) क्या होता है?

आज के neelgyansagar.in ब्लॉग के लेख में आपको मानव विकास सूचकांक(HDI) के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दे रहा हूं उम्मीद है आप लोगों को यह जानकारी पढ़कर मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) के बारे में पूरा ज्ञान हो जाएगा।

क्या है मानव विकास सूचकांक?What is Human Develpment Index?

मानव विकास सूचकांक यानी ह्यूमन डेवेलोपमेंट इंडेक्स (एचडीआई) जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आय(Income) सूचकांकों नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? का एक संयुक्त सांख्यिकी सूचकांक है। मानव विकास सूचकांक के जन्मदाता पाकिस्तान के अर्थशास्त्री श्री महबूब उल हक को माना जाता है। पहला मानव विकास सूचकांक 1990 में जारी किया गया था। तब से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(United Nations Development Program) द्वारा इसे प्रकाशित किया जाता है। जिसमें दुनिया के उन सभी देशों को विकास प्रगति सारणी में नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? श्रेणीबद्ध किया जाता है जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। जो मानव विकास सूचकांको की प्रगति की सूचना उपलब्ध करवाते हैं।

UNDP द्वारा 15 दिसंबर 2020 को एचडीआई रिपोर्ट 2020 जारी की गई है। इसका शीर्षक है -"The next frontier:Human Development and the Anthropocene".

मानव विकास सूचकांक(HDI)का निर्धारण किस आधार पर होता है?

स्वास्थ्य, शिक्षा और आय को आधार बनाकर तीन बुनियादी आयामों में मानव विकास की उपलब्धियों का एक राष्ट्रीय औसत दर्शाता है। एचडीआई उपरोक्त तीनों सूचकांकों के योग को तीन से विभाजित नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? करके प्राप्त किया जाता है।

संपूर्ण देशों को 4 मानव विकास श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है- बहुत अधिक, उच्च, मध्यम तथा निम्न देश। भारत मध्यम श्रेणी के मानव विकास में आता है।

  • जीवन स्तर: इसकी गणना प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय से की जाती है अर्थात एक व्यक्ति की कुल आय प्रतिवर्ष कितनी है।
  • स्वास्थ्य: इसकी गणना जन्म के समय जीवन प्रत्याशा से की जाती है।
  • शिक्षा: इसकी गणना वयस्क आबादी के बीच विद्यालय शिक्षा के औसत वर्षो और बच्चों के लिए विद्यालय शिक्षा के अपेक्षित वर्षों के माध्यम से की जाती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के संपूर्ण देशों का मानव विकास वर्गीकरण:

  1. बहुत अधिक- 1 से 62 देश।
  2. उच्च- 63 से 116 पायदान वाले देश।
  3. मध्यम- नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? 117 से 153 पायदान वाले देश।
  4. निम्न- 154 से 189 पाए जाने वाले देश।

मानव विकास सूचको के आधार पर शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, सकल प्रजनन दर, साक्षरता दर, शाला नामांकन दर, विवाह के समय औसत आयु, स्कूल शिक्षा प्राप्ति दर, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, सकल राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय, जीवन की मूलभूत सुविधाओं का स्तर आदि में प्रगति के स्तर को देखते हुए श्रेणीबद्ध किया जाता है।

मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट को प्रकाशित कौन करता है?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में दुनिया के विकास मुद्दों, प्रवृत्तियों और नीतियों पर चर्चा शामिल होती है। इसके अलावा यह रिपोर्ट मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को वार्षिक रैंकिंग भी प्रदान करती है। मानव विकास रिपोर्ट में चार अन्य सूचकांक भी शामिल होते हैं। जो निम्न प्रकार है:-

  1. असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक:-यह देश में स्थित असमानता के आधार पर मानव विकास सूचकांक की गणना करता है।
  2. लैंगिक विकास सूचकांक:-यह महिला और पुरुष मानव विकास सूचकांको की तुलना करता है।
  3. लैंगिक असमानता सूचकांक:- यह प्रजनन, स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और श्रम बाजार के आधार पर लैंगिक असमानता का एक समग्र आकलन प्रस्तुत करता है।
  4. बहुआयामी या निर्धनता सूचकांक:- यह गरीबी के गैर-आय आयामों का आकलन करता है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मुताबिक 2020 में मानव विकास सूचकांक में भारत ने 1 स्थान की छलांग लगाई है और 189 देशों के बीच इसकी रैंकिंग 131 हो गई है। यूएनडीपी की भारत में स्थानीय प्रतिनिधि शोडो नोडा के अनुसार भारत में 2005-2006 से 2015-2016 के बीच 27.1 करोड लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है अभी भी हालांकि भारत की स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में भारत की रैंकिंग 129 व वर्ष 2019 में 130 थी। तीन दशकों से तेज विकास के कारण यह प्रगति हुई है। जिसके कारण गरीबी में कमी आई है,साथ ही जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में बढ़ोतरी के कारण रैंकिंग में भारत का सुधार हुआ है।

रैंकिंग में नॉर्वे, स्विजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया,आयरलैंड और जर्मनी टॉप पर है। जबकि नाइजर, दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य,दक्षिणी सूडान,चाड और बुसंडी काफी कम एचडीआई वैल्यू के साथ फिसड्डी देशों नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? में शुमार है। भारत का एसडीआई वैल्यू 0.645 दक्षिणी एशिया के औसत 0.638 से थोड़ा ऊपर है। वर्ष 1990 में भारत का एचडीआई वैल्यू 0.431 था। वहीं वर्ष 2020 में बढ़कर 0.645 हो गया है। भारत 1.3% औसत वार्षिक एचडीआई वृद्धि के साथ सबसे तेजी से सुधार करने वाले देशों में शामिल है। मानव विकास की गति को बनाए रखने के लिए तथा इसको और अधिक तेज करने के लिए सामाजिक सेवा में सार्वजनिक क्षेत्र जैसे- शिक्षा और स्वास्थ्य की भूमिका बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है।

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Neelkamal

प्रस्तुतकर्ता Neelkamal

Dear reader's My self Durendra Singh Deora. My educational qualifications are M.Sc.(Botany), B.ed.I like blogging and tourism.Writting about surrounding is my passion.

सूचकांकों के प्रकार

पूरी दुनिया के लोगों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विभिन्न प्रकार के सूचकांकों का निर्माण किया गया है। इन सूचकांकों में लैंगिक असमानता सूचकांक, मानव विकास सूचकांक, बहुआयामी गरीबी सूचकांक और प्रौद्योगिकी उपलब्धि सूचकांक शामिल हैं।

पूरी दुनिया के लोगों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विभिन्न प्रकार के सूचकांकों का निर्माण किया गया है। इन सूचकांकों में लैंगिक असमानता सूचकांक, मानव विकास सूचकांक, बहुआयामी गरीबी सूचकांक और प्रौद्योगिकी उपलब्धि सूचकांक शामिल हैं।

लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) एक नया सूचकांक है जिसकी शुरूआत लिंग असमानता की माप के लिए 2010 में मानव विकास रिपोर्ट की 20वीं वर्षगांठ संस्करण के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा की गयी थी। UNDP के अनुसार, यह सूचकांक उन सभी की तत्वों की गणना करता है जिनकी वजह से देश की छवि को नुकसान पहुंचता हैंI इसकी गणना करने के लिए तीन आयामों का उपयोग किया जाता है: (I) प्रजनन स्वास्थ्य, (ii) अधिकारिता, और (iii) श्रम बाजार भागीदारी। पिछली कमियों को दूर करने के लिए नए सूचकांक को एक प्रयोगात्मक रूप में पेश किया गया हैI ये सूचकांक हैं,लिंग विकास सूचकांक (जीडीआई) और लिंग सशक्तिकरण उपाय (जीईएम), दोनों की शुरूआत 1995 की मानव विकास रिपोर्ट में की गई।

  • प्रजनन स्वास्थ्य के जीआईआई के दो संकेतक हैं (i) मातृत्व मृत्यु दर (MMR) और (ii) किशोर प्रजनन दर (AFR)
  • सशक्तिकरण आयाम को दो संकेतकों द्वारा मापा जाता है: (I) प्रत्येक लिंग (सेक्स) के लिए आरक्षित की गई संसदीय सीटों का हिस्सा और (ii) उच्च शिक्षा प्राप्ति का स्तर।
  • श्रम बाजार आयाम की गणना कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी से की जाती है। इस आयाम में कार्य भुगतान, अवैतनिक काम और सक्रिय रूप से कार्य की तलाश शामिल है। मानव विकास रिपोर्ट 2011 के अनुसार लैंगिक असमानता सूचकांक में भारत बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी नीचे है, 146 देशों की सूची में भारत का रैंक 129 th है, जबकि बांग्लादेश का 112 nd और पाकिस्तान का 115 th स्थान हैं।
  • ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों में स्थिति देखी जाए तो भारत में मानव विकास में सर्वाधिक असमानताएं हैं I

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index)

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) को 2010 में ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विकसित किया गया था। यह आय-आधारित सूचियों से परे गरीबी का निर्धारण करने के लिए विभिन्न कारकों का उपयोग करता था। इसने पुराने मानव गरीबी सूचकांक का स्थान लिया है।

एमपीआई एक तीव्र बहुआयामी गरीबी की सूची है। यह प्रर्दर्शित करती है कि लोग कई मुद्दों पर गरीब हैंI यह लोगों के लिए बहुत ही मामूली सेवाओं और महत्वपूर्ण मानव कामकाज के अभाव को दर्शाता है।

मानव विकास सूचकांक की गणना करने के लिए इस तीन मापदंडों का प्रयोग किया जाता है: (I) जीवन प्रत्याशा (ii) शिक्षा, और (iii) रहने का जीवन स्तर (Standard of Living)। इस सूचकांक की गणना 10 संकेतकों द्वारा की जाती है।

आयाम( Dimensions )

संकेतक (indicator)

तकनीकी उपलब्धि सूचकांक (Technological Achievement Index (TAI)

प्रौद्योगिकी उपलब्धि सूचकांक (टीएआई) का प्रयोग यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) द्वारा देश के तकनीकी उन्नति और प्रसार को मापने तथा एक मानव कौशल के आधार का निर्माण, नेटवर्क युग की प्रौद्योगिकीय नवाचारों में भाग लेने की क्षमता को दर्शाता है। टीएआई तकनीकी क्षमता के चार आयामों पर नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? केंद्रित है: (I) प्रौद्योगिकी का निर्माण, (ii) हाल ही में नवाचारों के प्रसार, (iii) पुराने नवाचारों का प्रसार, और (iv) मानव कौशल।

प्रौद्योगिकी सृजन: प्रति व्यक्ति निवासियों के लिए दिए गए पेटेंट की संख्या और विदेशों से प्रति व्यक्ति रॉयल्टी तथा लाइसेंस फीस की प्राप्तियों द्वारा मापा जाता है।

नये नवाचारों का प्रसार: प्रति व्यक्ति इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या और निर्यात के कुल माल में उच्च प्रौद्योगिकी और मध्यम प्रौद्योगिकी निर्यात की हिस्सेदारी से मापा जाता है।

पुराने नवाचारों का प्रसार: प्रति व्यक्ति टेलीफोन (मुख्य लाइन और सेलुलर) और प्रति व्यक्ति बिजली की खपत द्वारा मापा जाता है।

मानव कौशल: 15 वर्ष तक की आयु वर्ग कितनी आवादी स्कूल जाने वालों की है

की स्कूली आबादी और पुराने तथा सकल तृतीयक विज्ञान नामांकन अनुपात द्वारा मापा जाता है।

मानव विकास सूचकांक (HDI):-

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और जीवन स्तर का समग्र आंकड़ा है जो मानव विकास के चार स्तरों में देशों के रैंक का सूचकांक प्रदर्शित करता है। इसकी स्थापना सबसे पहले पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक और इसके बाद अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा (1995) में की गई थी जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित किया गया था।

2010 की मानव विकास रिपोर्ट में यूएनडीपी ने मानव विकास सूचकांक की गणना करने के लिए एक नई विधि का उपयोग शुरू किया। इसमें निम्नलिखित तीन सूचकांकों का प्रयोग किया जा रहा है:

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत सबसे नीचे

- दुनिया के 180 देशों की सूची में भारत की रैंक 180वीं पहुंची - येल

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत सबसे नीचे

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 (ईपीआई) की 180 देशों की सूची में भारत सबसे नीचे स्थान पर पहुंच गया है। हर दो साल में सामने आने वाले पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक की 11 श्रेणियों के 40 मानकों में भारत की रैंकिंग 180वीं रही है।

भारत का नीचे आना चिंताजनक :

ईपीआई 2022 की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत का सबसे कम स्कोर करना गंभीर चिंता का विषय है। रिपोर्ट हर दूसरे साल वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम येल सेंटर फॉर इन्वायरनमेंट लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर इंटरनेशन अर्थ साइंस इन्फॉर्मेंशन नेटवर्क द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की जाती है। 2022 की रिपोर्ट येल और कोलिबिया अर्थ इंस्टीट्यूट ने संयुक्त रूप से तैयार की है। पर्यावरण संबंधी सभी रिपोर्टों में ईपीआई की रिपोर्ट को सबसे सटीक माना जाता है।

इन सभी में फिसड्डी रहा भारत :

पर्यावरण जोखिम का खतरा, पीएम 2.5 और हवा की शुद्धता, वायु प्रदूषण, पानी और सफाई के निर्धारकों, पेयजल की गुणवत्ता, जैव विविधता, जल स्रोतों के स्वास्थ्यवर्धक प्रबंधन, कूड़े के निष्पदान, ग्रीन एनर्जी में निवेश समेत सभी निर्धारकों में भारत का प्रदर्शन सबसे नीचे रहा है।

डेनमार्क सबसे ऊपर

ईपीआई- 2022 की रैंकिंग में डेनमार्क को सबसे टॉप पर रखा गया है। भारत 180वीं पायदान पर है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने मौजूदा पर्यावरण कानूनों को मजबूत करने और नए कानून बनाने की जगह उन्हें और शिथिल कर रखा है। तटीय नियमन जोन, वन्यजीव कानून, जंगलों में खनन से जुड़े कानून, सभी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। केंद्र सरकार का जोर पर्यावरण को सुधारने की जगह उद्योगों को सहूलियत देने पर है। पश्चिमी घाट पर औद्योगिक इकाईयों का दबाव है। सरकार मेगा इन्फ्रा प्रोजेक्टस को विकास ठहराती है, जबकि यही परियोजना देश के जंगलों को नुकसान पहुंचा रही हैं और शहरों की हरियाली को नष्ट कर रही हैं। पानी का प्रबंधन भी ठीक नहीं है, क्योंकि देश के तकबरीन सभी राज्यों में बोरवेल खोदने के लिए मनमाफिक तरीके से अनुमति दी जा रही है। नतीजतन पानी खारा हो रहा है और जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। ऐसे समय, जब दुनिया के अधिकांश देश कोयले पर आधारित बिजली पर निर्भरता को कम कर रहे हैं, भारत में कोयले का उत्पादन और निर्यात दोनों बढ़ाया जा रहा है। इससे पैदा हुआ कार्बन डाइऑक्साइड पूरे देश में भयंकर गर्मी पैदा कर रहा है।

इन दो देशों का प्रदर्शन सबसे अच्छा

रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में केवल डेनमार्क और ब्रिटेन ही ग्रीनहाउस गैसों में 2050 तक कमी लाने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। भारत, चीन और रूस जैसे कई देश गलत रास्ता पकड़ चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर यही हाल रहा तो भारत, रूस, चीन और अमेरिका जैसे चार देश 2050 तक कुल ग्रीन हाउस गैसों का 50% उत्पादन करने लगेंगे। इनके अलावा 24 और देश हैं, जो दुनिया में कुल ग्रीन हाउस गैसों के 80% ऊपादन करेंगे।

अमेरिका 43वें स्थान पर :

अमेरिका धनी देशों के अपने साथियों से पिछड़ रहा है। पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में अमेरिका 43 वें स्थान पर है। यह रैंकिंग ट्रंप प्रशासन के दौरान पर्यावरण सुरक्षा के रोलबैक को दर्शाती है, जिसने लगभग 100 पर्यावरण नियमों को निरस्त या कमजोर कर दिया। सूची में फ्रांस (12वें), जर्मनी (13वें), ऑस्ट्रेलिया (17वें), इटली (23वें) और जापान (25वें) स्थान पर है। ईपीआई ने अनुमान लगाया है कि 2050 में चीन, भारत और रूस के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका चार सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक में से एक होगा।

2022 वैश्विक खाद्य नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? सुरक्षा नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? सूचकांक रिपोर्ट जारी

2022 वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक रिपोर्ट जारी |_40.1

2022 वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक (Global Food Security Index – GFSI) रिपोर्ट ब्रिटिश साप्ताहिक ‘द इकोनॉमिस्ट’ द्वारा जारी की गई। 11वां वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक तीसरे वर्ष के लिए वैश्विक खाद्य पर्यावरण में गिरावट दर्शाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा है। इस रिपोर्ट में, दक्षिण अफ्रीका ने अफ्रीका में सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश बनने के लिए ट्यूनीशिया को पीछे छोड़ दिया है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

झटकों के प्रति भेद्यता (Vulnerability to Shocks): वैश्विक खाद्य पर्यावरण बिगड़ रहा है, जिससे यह झटकों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 2012 से 2015 तक वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जिसमें समग्र GFSI स्कोर में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालाँकि, संरचनात्मक चुनौतियों के कारण वैश्विक खाद्य प्रणाली का विकास धीमा हो गया है।

सामर्थ्य (Affordability): 2022 में, GFSI को अपने दो सबसे मजबूत स्तंभों – सामर्थ्य, और गुणवत्ता और सुरक्षा के गिरने के कारण नुकसान उठाना पड़ा। अन्य दो स्तंभों (उपलब्धता, और स्थिरता और अनुकूलन) में कमजोरी इस वर्ष के दौरान जारी रही। मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि, व्यापार की स्वतंत्रता में कमी और खाद्य सुरक्षा के लिए धन कम होने के कारण सामर्थ्य (शीर्ष-स्कोरिंग स्तंभ) नीचे चला गया।

खाद्य सुरक्षा अंतर को बढ़ाना: 2022 में, शीर्ष 10 प्रदर्शन करने वाले देशों में से 8 यूरोप में हैं, जिसमें फिनलैंड 83.7 के स्कोर के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद आयरलैंड (81.7 स्कोरिंग) और नॉर्वे (80.5 स्कोरिंग) का स्थान है। इन देशों को GFSI के सभी 4 स्तंभों पर उच्च अंक प्राप्त हुए हैं। शीर्ष 10 सूची में गैर-यूरोपीय देश जापान और कनाडा हैं।

अफ्रीका का सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश: दक्षिण अफ्रीका, 59वें स्थान पर, अफ्रीका में सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश के रूप में पहचाना गया।

सामाजिक प्रगति सूचकांक में ओडिशा नीचे से पांचवें स्थान पर है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सामाजिक प्रगति सूचकांक (एसपीआई) में ओडिशा को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नीचे से पांचवां स्थान मिला है। इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस एंड सोशल प्रोग्रेस इम्पेरेटिव द्वारा तैयार किए गए और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य को टीयर वी में तीन निम्न सामाजिक प्रगति वाले राज्यों में रखा गया है।

48.19 के समग्र स्कोर के साथ, ओडिशा 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 32वें स्थान पर है। जबकि पुडुचेरी 65.99 के स्कोर के साथ शीर्ष पर है, लक्षद्वीप, नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है? गोवा और सिक्किम 65 से ऊपर के स्कोर के साथ क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं।

एसपीआई एक व्यापक उपकरण है जो राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों पर राज्य की सामाजिक प्रगति के समग्र माप के रूप में कार्य करता है। इसने राज्यों और जिलों का मूल्यांकन सामाजिक प्रगति के तीन महत्वपूर्ण आयामों - बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं, कल्याण की नींव और अवसर के 12 घटकों के आधार पर किया है।

जबकि बुनियादी मानवीय जरूरतों के घटक ने पोषण और बुनियादी चिकित्सा देखभाल, पानी और स्वच्छता, व्यक्तिगत सुरक्षा और आश्रय के मामले में राज्य और जिलों के प्रदर्शन का आकलन किया है, कल्याण घटक की नींव ने बुनियादी ज्ञान तक पहुंच के संबंध में की गई प्रगति का मूल्यांकन किया है। , सूचना और संचार, स्वास्थ्य और कल्याण और पर्यावरण की गुणवत्ता।

इसी तरह, अवसर घटक ने व्यक्तिगत अधिकारों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद, समावेशिता और उन्नत शिक्षा तक पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया है। राज्य के कम से कम 19 जिलों में सामाजिक प्रगति कम थी और छह में सामाजिक प्रगति बहुत कम थी। 38.5 पर, ओडिशा पानी और स्वच्छता संकेतक के तहत सबसे कम स्कोर वाले राज्यों में से एक था। मलकानगिरी में सबसे कम 26.26 प्रतिशत (पीसी) घरों में नल के पानी की आपूर्ति है और नुआपाड़ा 92.23 पीसी घरों में नल के पानी की आपूर्ति के साथ राज्य में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला जिला है।

व्यक्तिगत सुरक्षा में ओडिशा ने 33.04 अंक हासिल कर खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में जगह बनाई। महिलाओं के खिलाफ अपराध में ओडिशा को असम, दिल्ली, तेलंगाना, हरियाणा और राजस्थान के साथ जोड़ा गया है, जहां अपराध दर 90 से ऊपर है। सूचना और संचार तक पहुंच में, राज्य ने बिहार और झारखंड से नीचे रहने के लिए सबसे कम 23.71 स्कोर किया। 18.66 पर, नबरंगपुर कम प्रदर्शन करने वालों में से था।

224 जिलों में से 16 ओडिशा से थे जहां एनीमिया का प्रसार खतरनाक स्तर पर बढ़ गया है। राज्य ने बुनियादी मानवीय जरूरतों में 39.42, भलाई के आधार पर 47.96 और अवसरों में 57.18 अंक हासिल किए हैं। हालांकि, ओडिशा में सबसे ज्यादा 90.5 फीसदी बच्चों का पूर्ण टीकाकरण हुआ है।

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